Category: Election

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आख़िर तृणमूल ने बांग्लादेशी कलाकार को चुनाव प्रचार के लिए क्यों आमंत्रित किया?

जहाँ एक तरफ़ देश भर में लोकसभा चुनाव के प्रचार में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टियाँ देसी कलाकरों को कैम्पेनिंग के लिए बुलाती हैं . वहीं पश्चिम बंगाल में रविवार

छोड़ सियार भाई कुल्हड़ के आसा, तमासा बन जाइब, होइहे निरासा

“छोड़ सियार भाई कुल्हड़ के आसा, तमासा बन जाइब, होइहे निरासा…” भोजपुरिया गीत है. मनोज तिवारी का गाया हुआ. लेकिन हम यहां इन गाने की बात क्यों कर रहे हैं.

कांग्रेस ने सेना के फ़ेक लेटर्स पर कहा ‘मोदी सरकार में दूसरों का नाम लेकर झूठ बोलने आज़ादी छिनी’

चुनाव में सेना का इस्तेमाल होने पर पूर्व सैनिकों की शिकायत की एक चिट्ठी सामने आई थी, जिस पर विवाद शुरू हो गया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया

राहुल द्रविड़ को वोटर लिस्ट से नाम कटने की हकीकत

लोकसभा चुनावों से पूर्व ही विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग पर ईवीएम व वीवीपैट को लेकर विभिन्न प्रकार के आरोप लगाए जाते रहे हैं. साथ ही एनआरसी व वोटर लिस्ट के

आजम की नीचता को अखिलेश की मौन स्वीकृति

राजनैतिक मर्यादाओं को ताक कर रखकर राजनेता अपने वोट बैंक को कैसे एड्रेस करते हैं यह किसी से छिपा हुआ नहीं है, लेकिन कल जो आज़म खान ने रामपुर की

हिन्दूओं की स्थिति पर गहन चिन्तन की बेला है 2019 चुनाव

दोस्तों, इकोलॉजी में ‘कंपीटिटिव एक्सक्लूशन प्रिंसिपल’ नामक एक अवधारणा है. सिद्धांत यह है कि एक ही संसाधन के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले दो जीव दीर्घकालिक समय के लिए सह-अस्तित्व में नहीं रह सकते.

बेरोजगार लखपति कन्हैया कुमार

देश में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है. हालात इतने बुरे हो गए हैं कि एक बेरोजगार युवक साल में मात्र 2 लाख रुपये ही कमा पता है. हां, सही पढ़ा

फिजूल का भय फैलाते बिना स्टैंड के बॉलीवुडिया बौने

2014 को एक बार फिर से रिपीट किया जा रहा है. खुद को एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का सर्वेसर्वा समझने वालों ने फिर राजनीति में अपनी नाक घुसाई है. वैसे जब इनसे

इस्लामोफोबिया और होमोफोबिया को एक तराजू में तोलते कांग्रेसी

एक्टिविस्ट हरीश अय्यर कांग्रेस में शामिल हो गए. जिनको LGBT का नहीं पता वो शिखंडी के पात्र को याद कर लें और नाक की सीध में कलियुग तक चलते आएं.

जातिवाद पर मतदान लोकतंत्र की स्पिरिट के खिलाफ है

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावी कड़ाही चढ़ चुकी है. चुनावों के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल जीत के ‘पकवान’ तलने में जुटे हुए हैं. कुछ पार्टियां अहंकार से