बिहार के बेगूसराय में कन्हैया कुमार के समर्थकों ने अपने आलोचकों को ऐसा जवाब दिया जो शायद उनको हफ्तों तक याद रहे. कन्हैया के प्रशंसकों ने कुछ ऐसा कार्य कल बेगूसराय में कर दिया जिसको देखर वो दौर याद आ गया जब ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ ही लोकतंत्र में एक सच्चाई थी. बाहुबल का जोर. रसूख और पैसे का जोर. कालांतर में हुई उन घटनाओं को शायद अब कन्हैया कुमार चरितार्थ करना चाहते हैं. घटना है बेगूसराय के कुरैया गांव की.
इस गांव में चांद पेट्रोल पंप के पास से जब कन्हैया कुमार का काफिला निकल रहा था तब कुछ लोगों ने कन्हैया कुमार को काले झंडे दिखाते हुए कन्हैया विरुद्ध नारे लगाए. छात्र नेता महोदय का यूनिवर्सिटी कैंपस होता तो एकबार निपट भी लेते और खबर JNU की दीवारों से बाहर भी न जाती. परंतु ये तो भाई राजनीति का दूसरा अखाड़ा है.
यहां तो नेता जी की धोती खुलने तक कि खबरें छप जाया करती है, और यहां तो पोल खुल चुकी थी. लगे हाथ कन्हैया के समर्थकों ने आव देखा न ताव, उन लोगों की सुताई कर दी. घर में घुस कर मारा. ये सिर्फ नरेंद्र मोदी का ही नारा नहीं बल्कि अब कन्हैया कुमार भी बोल सकते हैं कि ‘ससुर हमहुँ घर में घुस के मरले रहिनि’.
लोकतंत्र का एक चित्र ये भी है. ये वही कन्हैया है जो लोकतंत्र की दुहाई देते नहीं थकते. अपने ऊपर देशद्रोह का मामला चल रहा है लेकिन दुनिया को यह बताते चलते हैं कि कौन देशभक्त नहीं है. बस यही कुछ ऐसी बातें हैं जो नेता जी का पीछा उनके चुनावी नतीजों तक करेंगी. कहो तो अभी स्टेज सजा कर भाषणबाजी शुरू कर दें. 70 साल की कमियों को बताने लगे. समाज के बड़े जानकार की तरह शोषण के दौर को ताजा करवा देंवें.
लेकिन राजनीति और भाषणबाजी दो अलग बातें होती हैं. कभी सच में चुनावी मैदान में उतरियेगा तो पता चलेगा कि देश में बातों की जलेबियाँ बनाने वाले कितने नेता है. कन्हैया के समर्थकों की इन हरकतों ने एकबार फिर से ये सिद्ध कर दिया कि कौआ चाहें कितना कोशिश कर ले लेकिन कभी हंस नहीं बन सकता. विक्टिम कार्ड खेलने वाले कन्हैया कुमार शायद इसको अपनी जाति पर ले सकते हैं तो पहले ही यह बात देंवें की हम यहाँ बस एक मुहावरा बोले हैं.
आश्चर्य यह है कि इनके लिए स्वरा भास्कर कुछ दिन पहले वोट मांगने गयी थी. शायद अब ट्विटर पर वो इसके लिए भी माफी मांग लें. वो क्या है कि उनके हृदय में कुछ ज़्यादा ही ग्लानि उत्पन्न हो रही है. आजकल वो आत्मग्लानि में इतना ज्यादा हैं कि सार्वजनिक रूप से सबसे माफी मांग रही हैं. चलिए राजनीति का एक रंग आखिरकार कन्हैया ने भी चख लिया.
वैसे भी लाल सलाम वालों का राजनैतिक इतिहास कितनी लालिमा से भरा हुआ है यह देश जानता है. कन्हैया की इस ‘असहिष्णुता’ को बेगूसराय याद रखेगा. बाकी उनके वैचारिक समर्थक अभी से डैमेज कंट्रोल में लग चुके होंगे.