दो दिन पहले फ्रांस के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक पेरिस के 850 साल पुराने मध्ययुगीन नॉट्रे-डेम कैथेड्रल में आग लग गई और मुख्य संरचना को छोड़कर भवन की शिखर और छत तक ढह गये. जाहिर है यह एक दुर्भाग्यपूर्ण खबर थी.
जल्द ही, देखते ही देखते नॉर्टे-डेम के जलने की तस्वीरें और वीडियो हमारे सभी फोन और टीवी पर छा गए अगर सच बोलूं तो मैं नोट्रे-डेम कैथेड्रल के बारे में नहीं जानता था लेकिन फिर भी आग देखकर दुख महसूस किया.
तभी अचानक बहुतेरे संदिग्धों के सोशल मीडिया पर भयभीत भावनाओं के उभार को देखकर मुझे थोड़ा शक़ होने लगा. मैने देखा इनमें से तो अनेकों वही भारतीय हैं, जिन्होंने कभी अपनी कला और वास्तुकला की परवाह नहीं की, वे नोट्रे-डेम के बारे में इतना भयभीत और पीड़ित क्यूँ हैं?
फिर बहुत सारे ट्वीट्स और थ्रेड्स पढ़े. इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, @Trueindology का ट्वीट देखा, जो की हाल ही में हज़ारों साल पुराने मीनाक्षी मंदिर को नष्ट करने वाली विनाशकारी आग के बारे में था. बहुत ताज़्ज़ूब हुआ की मुझे इस घटना के विषय में कोई जानकारी नहीं थी.
फिर जाना की मदुरैई का मीनाक्षी मंदिर कुछ ही महीने पहले भीषण आग लगने से बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त हो गया था. ये नोट्रे-डेम से काफी पुरानी है, वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी है, अत्यंत ही खूबसूरत है और हमारी प्राचीन शिल्पकाला की धारिणी भी है.
लेकिन क्या आपको इस घटना के बारे में चौबीसों घंटे मीडिया कवरेज हुआ हो, याद है? क्या आपने किसी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देखा? हमारे अपने भव्य मीनाक्षी मंदिर में लगी आग की झबर को शायद कुछ अख़बार के पन्नों में जगह मिली हो लेकिन किसी टीवी पर इसका कोई ज़िक्र भी नहीं हुआ.
मुझे तो अब भी शर्म आ रही है, और साथ में गुस्सा भी. शर्मिंदा इसलिए, क्योंकि एक 2000 साल पुराना प्रसिद्ध भारतीय मंदिर आग में नष्ट हो, और मुझे इसके बारे में पता भी नहीं. गुस्सा, क्योंकि हालात कल्पना से भी बदतर है.
अब ज़रा कल्पना करें की हज़ारों नॉर्ट-डेम्स जला दिए जाएँ, नष्ट किए जाएँ… वो भी किसी दुर्घटना में नहीं, बल्कि इंसानों द्वारा… सिर्फ़ इसलिए की उनकी विचारधारा, उनका विश्वास आपसे अलग हो?
आपका कहना की किसी कला और वास्तुकला की सराहना को सीमाबद्ध नहीं किया जा सकता, सही है. मैं आपकी सराहना की सराहना करता हूं. लेकिन जब पिछले दो दशकों में कश्मीर में सैकड़ों मंदिरों को नष्ट किया गया तो आपको आक्रोश क्यूँ नहीं आया? पीड़ा क्यूँ नहीं हुई?
भारत में हजारों प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें से कई अक्सर नष्ट हो गये या किए गये हैं. ख़ास कर उन लोगों ने जिन्होने इस बात पर कभी तूल नहीं दिया, अगर अचानक नॉर्ट-दमे की आग देखकर वास्तुकला प्रेमी बन जाएँ, तो यह बहुत ही संदेहास्पद है.
किसी ने ट्वीट किया – “Thou shalt not be forgiven for this huge loss to history, art, and architecture.” इस मूर्खता को समझना भी मुश्किल है.
हे मूर्ख, नोट्रे-डेम एक धनी प्रथम विश्व देश में है और इसके लाखों-करोड़ों प्रेमी और अनुयायी हैं जो की इसकी अच्छी देखभाल करेंगे. और तुरंत ही खबर आई की इस कैथेड्रल के पुनर्निर्माण के लिए फ्रांसीसी अरबपति फ्रेंकोइस-हेनरी पिनाउल ने 100 मिलियन यूरो देने का वादा किया.
और भारत के अंदर ये ही लोग कहेंगे: “इसके बजाय एक अस्पताल का निर्माण करें? या अनाथालय? नहीं? एक विश्वविद्यालय? उनके धर्मोपदेश केवल भारत की अशिक्षित-गँवार जनता के लिए आरक्षित हैं. पश्चिमी देशों का नाम सुनते हीं इनका हृदय उनकी परंपराएँ, उनके धरोहर के लिए पिघल जाता है.
आगे और पढ़ने पर जानकारी हुई की शायद, वेदपुरेस्वरार मंदिर में स्थित शिवलिंग को उपनिवेश के दौरान फ्रांसीसी द्वारा नष्ट कर दिया गया था. नोट्रे-डेम के बारे में पढ़ने के बाद निश्चित रूप से उल्लेख करूंगा कि यह व्यापक रूप से माना जाता है कि इस कैथेड्रल ने एक पूर्व बुतपरस्त (Pagan) मंदिर की जगह पर कब्जा कर लिया था.
मेरा सिर्फ़ इतना कहना है की जब आप पेरिस में हुए इस नुकसान पर शोक व्यक्त कर रहे हैं तो कृपया यह भी याद रखें कि आपके अपने घर में क्या हुआ था.
तब नालंदा विश्वविद्यालय को भी याद करें जिसे बख्तियार खिलजी ने जब जलाया तब इस आग में करोड़ों पांडुलिपियाँ हफ्तों-महीनों तक तक जलती रहीं और इस प्राचीन ज्ञान के भंडार को विनाश के गर्त में डाल दिया गया.
क्या आपमें यह समझने की भूख है कि सोमनाथ के मंदिर को, मार्तण्ड के भव्य सूर्य मंदिर को, किस विचारधारा के किस राक्षस ने क्यूँ जला दिया था? जो लोग राम जन्म भूमि से हमारी सभ्यता के भावनात्मक संबंध का मखौल बनाते हैं, वे नोट्रे-डेम के लिए रो रहे हैं?
क्या आपको ग्यात है जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के विषय में के एम मुंशी से क्या कहा था?
“I do not like your trying to restore Somnath. It is Hindu revivalism.” (“मुझे सोमनाथ को बहाल करने की आपकी कोशिश पसंद नहीं है. यह हिंदू पुनरुत्थानवाद है.”)
क्या आपलोगों ने इस बात के लिए कभी नेहरू को कटघरे में खड़ा किया? नहीं, आप हमेशा उनके बचाव में खड़े रहे.
मुझे भी कला और वास्तुकला से प्यार है, लेकिन मेरी अपनी प्राथमिकताएँ हैं. कला और वास्तुकला की सराहना सीमाओं को पार करती है, ठीक है, और किसी भी पश्चिमी नुकसान पर शोक करने को फैशानाबले मानना भी ठीक है. लेकिन नोट्रे-डेम के बारे में रोना और अपने स्वयं के बर्बाद मंदिरों के बारे में चुप्पी, सिर्फ़ और सिर्फ़ बेशर्मी है.