लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए पार्टियों हर तरह के पैंतरे आज़मा रही हैं. इसी क्रम में कांग्रेस पार्टी ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आई तो देश के 25 फीसदी गरीब परिवारों को हर साल 72,000 देगी. इस वादे को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के खिलाफ मानते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कांग्रेस पार्टी से जवाब माँगा है.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में दलील दी है कि कांग्रेस के चुनावी मेनिफेस्टो में 72,000 रुपये न्यूनतम आय की गारंटी का वादा रिश्वत की तरह है और यह जन प्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन है. मतदाता को प्रलोभन देना निष्पक्ष मतदान के खिलाफ है. इससे मतदान की प्रक्रिया प्रभावित होती है. इस पर कोर्ट ने कांग्रेस से दो हफ़्ते के भीतर जवाब माँगा है.
एक राजनीतिक दल इस तरह का वादा नहीं कर सकता क्योंकि यह कानून और आचार संहिता का उल्लंघन है. याचिका में कोर्ट से चुनाव आयोग को निर्देश जारी कर कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र से न्यूनतम आय की गारंटी का वादा हटवाने का अनुरोध किया गया है. कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 13 मई को होगी.
यह आदेश चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और एसएम शमशेरी की डिवीजन बेंच ने अधिवक्ता मोहित कुमार और अमित पाण्डेय की जनहित याचिका पर दिया है. याचिका की सुनावाई जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राजेंद्र कुमार कर रहे हैं. याचियों का कहना है कि इस घोषणा को घोषणापत्र से हटाया जाए. साथ ही याचियों के 3 अप्रैल 2019 को चुनाव आयोग को भेजे गये प्रत्यावेदन को निर्णीत किया जाए.
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में 2030 तक गरीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है जिसके तहत पांच करोड़ सबसे गरीब परिवारों को न्यूनतम आय योजना ‘न्याय’ के तहत हर साल 72 हजार रुपये दिए जाने का वादा किया गया है.
इसके अलावा कॉन्ग्रेस की न्याय योजना को लेकर चुनाव आयोग ने राहुल गाँधी को आचार संहिता उल्लंघन का नोटिस जारी किया है. कांग्रेस ने अमेठी में न्याय योजना के दावे प्रचार सम्बंधी का एक बैनर बिना मकान मालिक की अनुमति लिए लगा दिया जिस पर आयोग ने उनसे जवाब माँगा है. इसको लेकर आयोग ने 24 घंटे के अंदर उनसे जवाब माँगा है.
कांग्रेस के न्याय के चक्कर में झूठे वादों के साथ अन्याय हो रहा है.