सर्वदलीय होली मिलन समारोह: बुरा न मानो होली है

दलों के बीच बढ़ती तल्खी से चिन्तित चुनाव आयोग ने रामलीला मैदान में सर्वदलीय होली मिलन समारोह आयोजित करने का अभिनव प्रयोग किया. रामलीला मैदान के पश्चिमी छोर पर पूरब की ओर रुख करके चौकीदार सह प्रधान सेवक की अगुवाई में एनडीए की टोली बैठी है. टोली का होली थीम है ‘सर्जिकल स्ट्राइक’.

मिराज और सुखोई के सांकेतिक चित्र लगे हैं. एक बड़े स्क्रीन पर पाकिस्तान में फैली दहशत लाइव दिखायी जा रही है. प्रधान सेवक मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं. टोली में सभी सांसद शामिल थे और थीम भी उकसाने वाला था. इसलिए प्रतिभागियों के जूते पहनकर आने की मनाही थी. खलीलाबाद के युवा और शालीन सांसद ने जोगीरा छेड़ा:

कउन माटी के बनल मोदी कउन माटी के हम

अइसन माटी संसद पहुँचाए, उस माटी में दम 

जोगीरा सारा रा रा …

बिलंब से आए एक पात्र माननीय हर आने जाने वाले को चुप करा रहे हैं. सुशासन कुमार उनसे कहते है; “अरे भाई, आजकल हम इधरे हैं और ओइसहु ई टीवी डिबेट नहीं है.” पासवान जी भी सपोर्ट करते हैं; “जे है से ठीके कह रहे हैं सुशासन बाबू, उ का कहते हैं हम तो परमानेन्टे टैप हैं और अब तो इहो छरपकर आ गए हैं.” जबरदस्त उत्साह और सौहार्द के बीच टोली की होली जारी है.  

अध्यक्ष जी के नेतृत्व में कांग्रेस की टोली पश्चिम की ओर मुँह किए बैठी है. इनकी होली का थीम है ‘सबूत’. ये सर्जिकल स्ट्राइक के हताहतों का सबूत मांग रहे हैं. अपने सेकुलर होने के सबूत के रुप में अध्यक्ष जी ने जनाब मौलाना मसूद अजहर जी की मोम की मूर्ति लगा रखी है. अजहर जी को हरे रंग का गुलाल लगाकर अध्यक्ष जी बार बार ‘होली मुबारक’ कह रहे हैं. दिग्गी राजा ‘आमीन आमीन’ कहते नहीं थक रहे. महासचिव महोदया फोटोजेनिक होली खेलने के मूड में हैं. जीजाजी भ्रष्टाचार निवारण को होली का थीम बनवाना चाहते थे पर सफल नहीं रहे. लेकिन उन्हे जोगीरा में‘सांची बात’ कहने से कोई नहीं रोक पाया …

माल्या और मोदी भाग गए, लिया देश को लूट

लूटकर भी हम देश में बैठे, हमको मिली है छूट

जोगीरा सारा रा रा …

कांग्रेस और भाजपा दोनों मिले हुए हैं क्योंकि दोनों होली खेल रहे हैं, यह कहकर दिल्ली के मालिक ने इस समारोह में आने से लगभग मना कर दिया था. फिर उन्हे लगा कि क्या पता यहाँ कोई गठबंधन के लिए तैयार हो जाए. ‘लगभग’ होली थीम के साथ वह अपनी कलह कंपनी के कलाकार लेकर रामलीला मैदान पहुँच गए. वह कभी मैडम दीक्षित से, कभी कैप्टन साहेब से तो कभी अध्यक्ष जी से कातर गुहार करते हैं कि लगा दो ना गुलाल. लगभग सबसे ना सुनने के बाद वह दीदी की शरण जाने को ही होते हैं कि कविवर धमाकेदार एंट्री मारते हैं:

इऩको देखा,उनको देखा,देखा लिया हर हाल

आत्मुग्ध बौने का दिल्ली देख रही कमाल

जोगीरा सारा रा रा …

बुआ-बबुआ की टोली का होली थीम है ‘गरजू होली’. गरज की धू धू जलती आग से सौहार्द की लपटें उठती साफ दिख रही हैं. बुआ-बबुआ की टोली और भाजपा की टोली के ठीक बीच में बैठे समाजवादी ताऊ कहते हैं; “मुए भी अंग अगाओ.” ताऊ के बोल बचन से लोग यह समझते हैं कि ताऊ पर होली का रंग चढ़ चुका है. माजरा समझकर ताऊ स्पष्टीकरण देते हैं; “मेआ मअअब है कि मुए अंग अगाओ.” फिर भी कोई झांसे में नहीं आता. तभी वहाँ मराठा क्षत्रप पहुँच जाते हैं और दोनों बतियाने लगते है. वहीं ताऊ सहोदर जोगीरा गा रहे हैं:

एक दूजे से बात कर रहे, बैठकर दोनों तात

न इनके पल्ले पड़ रहा, न वो समझें कोई बात

जोगीरा सारा रा रा …

महागठबंधन को दिए गए स्थान पर भाम्ह लोट रहा है क्योंकि दीदी और नायडू जैसे लोग कांग्रेस से खुन्नस खाए बैठे हैं, तेजू बाबू छउकते मांझी और फउंकते कुशवाहा के साथ नाक फुलाकर बैठे हैं, बुआ-बबुआ अलग स्टॉल लगाए बैठे हैं, लालखंडी चाइनीज गुलाल बेचने में व्यस्त हैं और अध्यक्ष जी का मजमा भी अलग लगा है. खाली जगह देखकर लोकतंत्र को खतरे से बाहर निकालने वाले या घायल लोकतंत्र को चंगा करने वाले या हत्या के बाद लोकतंत्र को पुर्नजीवित करने वाले पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की टोली वहाँ बैठ जाती है. ये लोग महागठबंधन के बिखड़े घटकों को चौकीदार की टोली का भय दिखाकर एकजुट होने का आह्वान करते है. इस आह्वान की हवा निकालते हुए एक एनडीए समर्थक पत्रकार जोगीरा गाते हैं:

भानुमति ने कुनबा जोड़ा पर छप्पर नहीं छवाए

ऐन वक्त पर फुस्स हुआ जो महागठबंधन कहलाए

जोगीरा सारा रा रा ….

इस जोगीरे पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार प्रबुद्ध लोग व पत्रकार जोगीरा गाने वाले सज्जन संग गुत्थमगुत्था हो गए. भयंकर लसराकुट्टन होने की नौबत आ गयी. सभी टोलियां सुविधानुसार अपना अपना साइड लेने लगीं और लगा कि तीसरा विश्वयुद्ध दूर नहीं. समाजवादी ताऊ की पहलवानी भी कुलांचे मारने लगी; “ओको मत, ओ आने दो.”

स्थिति बिगड़ते देखकर चुनाव आयोग प्रतिनिधि ने चुनाव आचार संहिता के तहत अपने वीटो का प्रयोग करते हुए हूटर बजा दिया. गाना बजने लगा … गिले शिकवे भूलकर दोस्तों, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं… लड़ाई बंद करके सभी टोलियां एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हुए गले मिलने लगीं. भारतीय लोकतंत्र में संस्थाओं का इतना ‘इन-लेटर’ सम्मान तो शेष है ही. काश, यह सम्मान ‘इन-स्पिरिट’भी होता और होली मिलन के दौरान चुनाव आयोग के हूटर द्वारा आहूत ऐसी एकता राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर दलों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों में स्वमेव होती.



दावा त्याग – लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. आप उनको फेसबुक अथवा ट्विटर पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दर्शन Surplus प्रदर्शन Deficit @rranjan501

1 Comment

  1. Riozee
    March 21, 2019 - 5:38 am

    Superb write up.

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