कुम्भ महापर्व हिन्दू धर्म के प्राचीनतम पर्वों में से एक है. इस पर्व का उल्लेख वेदों ओर पुराणों में मिलता है. आध्यात्मिक उत्सव के रूप में कुम्भ का इतिहास काफी पुराना है. इसे सांस्कृतिक मेले के रूप में आयोजित करने की शुरुआत सम्राट हर्षवर्द्धन ने की.
वैसे तो कुम्भ उत्सव हज़ारों वर्षों से हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है पर 2019 में तीर्थराज प्रयाग में आयोजित सामाजिक समरसता का ये धार्मिक आयोजन कई मायनों में महत्वपूर्ण है. यह उल्लेखीय है कि 2017 में कुम्भ को यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में में शामिल किया गया है. इस मेले को दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले के रूप में मान्यता प्राप्त है. इस बार कुम्भ को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया गया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार की ओर से देश के सभी गांवों और देश के सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से विश्व के 192 देशों के प्रतिनिधियों को कुम्भ में आने के लिए निमंत्रण भेजा गया.
योगी सरकार द्वारा पहली बार कुम्भ में आने वाले साधु-संतो और देश विदेश से आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की बुनियादी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मेला प्राधिकरण की स्थापना की गई है. इस प्राधिकरण का उद्देश्य मेले का सफल और सुव्यवस्थित आयोजन करना है. सरकार द्वारा संतो और तीर्थयात्रियों की सुख सुविधा संबंधी हर छोटी बड़ी बात का ध्यान रखा जा रहा है.
योगी सरकार ने मेला क्षेत्र में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं. मेले में स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान दिया गया है. बेहतर ट्रैफिक मैनेजमेंट की व्यवस्था की गई है. पहली बार यात्रियों को जल, थल एवं वायु मार्ग द्वारा त्वरित स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है. आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए इस उत्सव को दिव्य और भव्य बनाने का प्रयास किया गया है. घाटों को सुंदर लाईटों से सुसज्जित किया गया है. संगम तट पर साधु-संतों और कल्पवासियों के लिए विशाल पंडाल व मंडप तैयार किये गए हैं. यात्रियों व पर्यटकों के लिए रैन बसेरे बनाये गए हैं और टेंट सिटी बसाई गई है. मेला मार्ग में थीम आधारित गेट बनाये गए है.
पहली बार कुम्भ के अवसर पर पूरे प्रयागराज नगर में जगह जगह पर कला मंच बनाए गए हैं जिसके माध्यम से देश विदेश से आये कलाकार लोक संगीत एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों से मनोरंजन कर रहे हैं. अखाड़ों के शाही स्नान की कुम्भ की ऑफिशियल वेबसाइट के माध्यम से लाइव प्रस्तुति की जा रही है. यात्रियों के भोजन की उचित व्यवस्था के लिये फूड कोर्ट बनाये गए है.
आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय का यह पर्व कुछ और दृष्टि से भी ऐतिहासिक है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि योगी जी की पहल पर 450 साल से किले में बंद सरस्वती कूप और अक्षयवट को आम जनता के दर्शन और पूजन के लिए खोला गया और प्रयाग की पहचान भारद्वाज ऋषि के आश्रम में भी पूजा और दर्शन की व्यवस्था की गई है. यह पहला अवसर है जब योगी आदित्यनाथ के रूप में किसी मुख्यमंत्री ने साधु संतो और अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ त्रिवेणी में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित किया है. यह दूसरा अवसर है कि भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति, माननीय रामनाथ कोविंद जी ने कुम्भ पर्व में भाग लिया. पहली बार डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद कुम्भ स्नान के लिए आए थे. इसके अतिरिक्त कुम्भ उत्सव की तैयारियों का निरीक्षण करने विश्व के 70 देशों के राजनयिकों का आगमन हुआ. जिन्होंने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया कि किस प्रकार कुम्भ मेले में रेत पर एक अस्थायी नगर बसाया जाता है, किस प्रकार एक बड़ी जनसंख्या के लिए बुनियादी सुविधाएं जुटाई जाती हैं और कैसे भीड़ प्रबंधन किया जाता है.
कुंभ के प्रति जिस तरह से देश और विदेश में आस्था बढ़ रही है और लाखों लोग आध्यातिमक चेतना की परम अनुभूति के लिए प्रयागराज में एकत्रित हो रहे है, ऐसा लगता है मानो पूरा विश्व कुंभमय हो गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि योगी आदित्यनाथ का कुम्भ की ग्लोबल ब्रैंडिंग का प्रयास सफल रहा है. कुंभ का पर्व अद्भुत और अलौकिक है और इसके माध्यम से आध्यात्मिक विश्व गुरु भारत और और सनातन संस्कृति को नई वैश्विक पहचान दिलाने के लिए भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयास निसंदेह प्रशंसनीय और सराहनीय है.