एक और दक्षिणपंथी विचारधारा वाले एकाउंट को ट्विटर द्वारा सस्पेंड कर दिया गया. सोशल मीडिया युग के अंदर एक बहुत बड़ी विडंबना यह है कि जिस सोशल मीडिया ने लोगों को उनकी राय रखने का एक प्लेटफार्म दिया वही सोशल मीडिया अब एक विचारधारा के समर्थकों का मुंह बंद कर रहा है.
इसकी शिकायत फेसबुक से शुरू हुई जहां फेसबुक ने कई दक्षिणपंथी अकाउंट्स को बैन कर दिया. अब ट्विटर के ऊपर भी यह बीमारी फैलती जा रही है. शायद यह ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी के पिछले दौरे का असर है जहां उन्होंने ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता’ को नीचा दिखाने वाला एक प्लेकार्ड पकड़ा था. वामपंथ की विचारधारा से वह इतने प्रभावित हुए कि अपने कार्यक्षेत्र में भी वह दक्षिणपंथी विचारधारा को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. यदि किसी की विचारधारा को आप स्वीकार नहीं कर सकते हैं तो कम से कम अपनी सोशल मीडिया साइट को सर्व समावेशी तो मत कहिए. यदि आप दूसरी विचारधारा को सुन नहीं सकते तो आप एक लिबरल व्यक्तित्व के स्वामी तो नहीं हो सकते.
ऋषि बागरी नामक एक दक्षिणपंथी विचारधारा के मानने वाले का अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया. इसके पीछे कोई कारण भी नहीं बताया. सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि ऋषि ने अपने अकाउंट द्वारा किसी भी प्रकार की गाली गलौज, सेंसिटीव इमेज , वीडियो या पोस्ट शेयर नहीं किया था. अगर ट्विटर के कम्युनिटी गाइडलाइंस के ऊपर जाएं तो ट्विटर की कम्युनिटी गाइडलाइंस यह सभी चीजें ना करने की बात कहती है. ऋषि ने भी वही किया लेकिन फिर भी यदि उनका अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया (बिना किसी ठोस कारण दिए हुए) तो यह संदेह के घेरे में आता है.
दूसरी तरफ कई ऐसे टि्वटर के अकाउंट चलते हैं जिनके द्वारा एक धर्म विशेष को टारगेट किया जाता है. उनके देवताओं की पेड़ पर बंधे हुए तस्वीरें दिखाई जाती हैं. यह भी दिखाया जाता है कि किस प्रकार से एक नेता के द्वारा उनको चाबुक मारे जा रहे हैं. लेकिन ट्विटर ऐसी फोटो को ना तो बैन करता है और ना ही ऐसे अकाउंट चलाने वाले के अकाउंट सस्पेंड करता है. स्थिति यह हो गई है कि ट्विटर के ऊपर दक्षिणपंथी विचारधारा के मानने वाले लोगों को अपनी आवाज उठाने के लिए हैशटैग ट्रेंड कराना पड़ता है.
कई लोग यह कह रहे हैं कि ऋषि प्रधानमंत्री मोदी के लिए कैंपेन किया करते थे. अगर इस बात को सच भी मान लिया जाए तब भी ट्विटर के ऊपर लगे हुए आरोप गलत सिद्ध नहीं होते. सोशल मीडिया बनाया ही इसलिए गया है ताकि एक लिबरल वातावरण क्रिएट किया जा सके. क्या ट्विटर इससे इंकार कर सकता है कि उसकी साइट के ऊपर दुनिया भर के नेताओं के फॉलोवर्स और उन नेताओं के अकाउंट्स हैं.
सोशल मीडिया अपनी बात रखने का सबसे सरल माध्यम है. यदि वहां भी ऐसे स्पीडब्रेकर लगाए जाएंगे तो सोशल मीडिया का औचित्य खत्म हो जाएगा. जहां सबको अपनी बात कहने का अधिकार है. लेकिन यदि सोशल मीडिया की एक साइट को किसी एक विचारधारा से दिक्कत होने लगती है तो यह उसकी मूल भावना के खिलाफ कुठाराघात है.
ट्विटर फेसबुक या फिर अन्य सोशल मीडिया साइट के कर्ता-धर्ताओं को यह सोचना चाहिए कि दुनिया भर में उनके फॉलोवर्स है. यदि एक विचारधारा के फॉलोवर्स को टारगेट किया जाएगा और इस प्रकार उनके अकाउंट्स को ससपेंड जाएगा तो यह एक गलत संदेश दुनिया में भेजता है. हम यह नहीं कह रहे हैं कि दूसरी विचारधारा के अकाउंट को सस्पेंड करो, लेकिन जिस एक खुले वातावरण का ढोल पीट यह सोशल मीडिया साइट्स बनी है, उसकी मूल-विचारधारा पर तो कम से कम खरे उतरना चाहिए.
देश के आम जनमानस के भीतर यदि यह संदेश चला गया कि इन सोशल मीडिया अकाउंट पर एक खास विचारधारा को टारगेट किया जाता है, तो फिर इस देश की जनता सरकार को ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया को भी सबक सिखाने की पूरी ताकत अंदर रखती है. जुकरबर्ग और जैक डोर्सी को समय रहते संभल जाना चाहिए.
दावा त्याग – लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. आप उनको फेसबुक अथवा ट्विटर पर सम्पर्क कर सकते हैं.
1 Comment
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