ओपिनियन पोल के पीछे का गणित

लोकसभा चुनाव 2019 आरम्भ हो चुके है. हालांकि इसके नतीजे तो 23 मई को ही पता चलेंगे लेकिन इन डेढ़ महीनों में हम ओपिनियन पोल्स की बाढ़ देखेंगे. हर चैनल का अपना अलग ओपिनियन पोल होता है. हममें से बहुत से लोगो को ऐसे ओपिनियन पोल से ही पता लगाने की कोशिश करते हैं कि चुनावी हवा किस तरफ बह रही है. बहुत कम लोग ही इसके पीछे लगे विज्ञान या उसके तरीके पर सवाल उठाते हैं.

क्या सारे पोल ‘आपको क्या लगता है’ पर ही निर्भर हैं? क्या यह सभी आपके मन की भावना/ विचारों पर आधारित हैं या इसके पीछे कुछ विज्ञान भी है?

मतदाताओं के वोट का अनुमान लगाने के लिए हर एग्जिट/ओपिनियन पोल लगा रहता है कि कैसे यह पता लगाया जाए कि एक मतदाता किस पार्टी या गठबंधन को वोट देगा. इसका पता लगाने हेतु वे सैंपल्स का इस्तेमाल करते हैं और बताते हैं कि कौन सा गठबंधन या पार्टी जीतेगी. हालांकि हम यहां वोट प्रतिशत/शेयर की जगह इस विषय पर बात करेंगे कि ये वोट कैसे सीट में बदलते हैं. भारत की विशालता और विविधता को देखते हुए सैंपल सही प्रकार से तैयार करना आवश्यक हो जाता है. अधिकतर ओपिनियन पोल यह कोशिश करते हैं कि विभिन्न प्रकार के ऐसे सांख्यिकीय मॉडल का प्रयोग करे हैं जिससे उनका सैंपल सही आये. बाजार में खड़े होकर हर आते जाते व्यक्ति से यह पूछना कि वह चुनावों में किसे वोट देगा, किसी एक लोकसभा, राज्य या देश के मूड को भांपने का सही तरीका नहीं हो सकता. लोगों की राय बदलती है.

लोपक ने Ihatestatistics.com, decorrespondent.nl, Maarten Lambrechts and Peilingen की कुशल टीम के साथ काम करके http://rocknpoll.graphics/ का हिन्दी वर्जन तैयार किया है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं।

तैयार किए गए सैंपल पर ओपिनियन पोल करने के बाद यह पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि पार्टियां या गठबंधन चुनावों में कितनी सीटें को जीतेंगे. इसलिए प्रोफेशनल द्वारा विभिन्न सांख्यिकी और गणितीय मॉडल का इस्तेमाल कर यह पता लगाया जाता है. लेकिन इन गणनाओं में त्रुटि की संभावना हमेशा रहती है. वस्तुतः तभी असली नतीजा अनुमानों से हमेशा अलग होता है. वास्तविक परिणाम हमेशा अनुमानों से अलग होंगे लेकिन कुछ ओपिनियन पोल करने वालों के अनुमान बुरी तरह से गलत सिद्ध होते हैं.

लेकिन अपने पोल को बुरी तरीके से गलत साबित होने से बचाने के लिए पोल करने वाले पार्टियों या गठबंधन के लिए सीटों का एक रेंज देते हैं. इस रेंज को ही मार्जिन ऑफ एरर कहा गया है. ओपिनियन पोल बनाने के पूरे तरीके की पूरी व्याख्या बहुत उबाऊ है जिसे समझना भी मुश्किल होता है. इसलिए नीचे दिया हुआ डेमोंसट्रेशन बताता है कि कैसे एक छोटा सा मार्जिन ऑफ एरर, सीट की जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाता है.