गोआ के बड़बोले पादरी के बयान पर मीडिया की चुप्पी शर्मनाक

बीजेपी पर हमेशा ही हर चुनाव के पहले ध्रुवीकरण का आरोप लगाया जाता है. भले ही हर सभा में विपक्षी पार्टियाँ खुलेआम मुस्लिम और ईसाइयों को भड़काऐं कि अगर आप एकजुट नहीं हुए तो खतरा पैदा होगा. भले ही बीजेपी शायद ही कभी खुल के हिंदुओं से वोट मांगे पर अल्पसंख्यको को डरा धमका के एकजुट होकर वोट डालने की अपील करें.

आज ही गोआ के पादरी पर डर का माहौल पैदा करने खिलाफ बीजेपी ने इलेक्शन कमीशन में गुहार लगाई है. गोआ के पादरी का आरोप था कि स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर (गोआ के पूर्व मुख्यमंत्री) को कैंसर इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने एक छोटे से गांव में हो रहे कोयले के कारण प्रदूषण की शिकायत को नजरअंदाज किया. और यह भगवान की तरफ से सज़ा थी.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पादरी कंसेसाओ द सिल्वा यह बोलते हुए नज़र आ रहे हैं कि ‘जो भगवान को नाराज़ करते हैं उन्हें भगवान हमेशा सज़ा देता है.’ पादरी ने यह भी कहा कि लोगों ने प्रदर्शन किए पर पर्रिकर ने ध्यान नहीं दिया. उनकी जेब भरी हुई थी. भगवान ने उन्हें कैन्सर दिया. पैंक्रिएटिक कैंसर सबसे दर्दनाक कैंसर है. उन्होंने कई लोगों को दुख पहुंचाया.

पहली बात तो किसी स्वर्गीय व्यक्ति के बारे में इस तरह से बात करना किसी भी व्यक्ति को शोभा नहीं देता. इस तरह की बात करना न केवल मृत व्यक्ति और कैंसर जैसी भयंकर बीमारी का मज़ाक उड़ाना ही नहीं बल्कि उनका मज़ाक उड़ाना भी है जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं या जिनके प्रियजन ऐसी बीमारी से ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं.

मनोहर पर्रिकर की मृत्यु पैंक्रियाटिक कैंसर से 17 मार्च को हुई थी. कैंसर की बीमारी से जूझते हुए भी अपने काम को लेकर उनकी प्रतिबद्धता कम नहीं थी. हालांकि विपक्ष ने ऐसे मौके पर भी राजनीतिक कटाक्ष करने का मौका नहीं छोड़ा. राहुल गांधी ने भी बीमार अवस्था में पर्रिकर जी का नाम लेकर पूरे देश को गलत जानकारी दी. अपनी सादगी को लेकर जाने जाने वाले मनोहर जी पर शायद कभी विपक्ष ने भी पैसे हड़पने का आरोप नहीं लगाया होगा.

इन सबके बीच सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि बीजेपी या संघ परिवार से हल्का सा भी सम्पर्क रखने वाले किसी साधु के अवांछनीय बयान पर आसमान सिर पर उठाने वाला और कई दिनों तक बहस करने वाला हमारे देश का मुख्यधारा का मीडिया इस घटना पर चुप्पी साधे है.

यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि सेकुलरिज्म के नाम पर ऐसा अन्याय वर्षों से चल रहा है जहाँ एक समाज की कीमत पर बाकी समुदायों के गलत कृत्यों को भी छुपाया जाता है. इस केस में भी ऐसा ही दिख रहा है। इस देश के मीडिया को यह सोचना होगा कि उसकी ओर से सब समुदायों को बराबर महत्व मिलना चाहिए या नही। अन्यथा इस प्रकार का व्यवहार समाज में अन्याय और भेदभाव की भावना को जन्म देगा.

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