लोकतंत्र बचाने वालों का असल उद्देश्य आज सामने आ गया. आज लोकसभा चुनावों की 95 सीटों पर चुनाव का दूसरा चरण था. पश्चिम बंगाल में भी वोटिंग थी, लेकिन पश्चिम बंगाल की एक सीट पर वोटिंग का वह कुचक्र सामने आया जिसको देखने के बाद लोकतंत्र बनाने वालों को शर्म आ जाएगी. जिस नरेंद्र मोदी से लोकतंत्र बचाने का पूरा ड्रामा चल रहा है वही लोग लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए आज पकड़े गए हैं.
पश्चिम बंगाल के रायगंज में वोटिंग के दौरान लोकतंत्र को नीचा दिखाने वाली तस्वीर सामने आई तस्वीर सामने आई. यहां पर प्रॉक्सी वोटिंग का गंदा खेल चल रहा है. प्रॉक्सी वोटिंग यानी आप के नाम पर कोई और वोट डाल जा रहा है. टाइम्स नाउ के एक बड़े खुलासे में एक भयंकर सच्चाई का सामना लोगों को करना पड़ा है. लोकतंत्र के ऊपर कुठाराघात करने वाली इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है.
पश्चिम बंगाल के माधोफुलबड़ी इलाके में ऐसा बताया जा रहा है कि दो मुख्य संप्रदायों के बीच में भारी टेंशन का माहौल है. यहां हिंदू और मुसलमानों के बीच में दो फाड़ स्पष्ट नजर आते हैं. एक मुस्लिम डोमिनेटेड इलाका होने के चलते यहां मुस्लिम बहुसंख्यक है, अतः दो संप्रदायों के बीच के बीच के बीच में आए दिन कोई न कोई झड़प कोई झड़प होती रहती है. लोकसभा चुनाव के के बीच में जब टाइम्स नाउ के पत्रकार ने इसका के पत्रकार ने इसका खुलासा किया तो इस पूरे पूरे कुचक्र का भंडाफोड़ हो गया.
बूथ नंबर 191 में जब पत्रकार ने शिकायत मिलने पर रिपोर्टिंग करनी चाही तो वहां हिंदू संप्रदाय से एक वोटर आया और उसने बताया कि उसका वोट पहले ही कोई डाल चुका है. ऐसे ही एक और व्यक्ति आए जिन्होंने बताया कि उनके नाम से वोट उनके नाम से वोट पहले ही डाला जा चुका है. इसके बारे में जब वहां के अधिकारी से पूछा गया तो उन्हें इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था. पूरे पोलिंग बूथ के अंदर सिर्फ एक ही पार्टी का एजेंट बैठा हुआ था और वह एजेंट तृणमूल कांग्रेस का था.
इसने पूरी स्थिति को बेहद ही संवेदनशील बना दिया है. संदेह के घेरे में यह कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग को इस इलाके में दोबारा चुनाव कराने चाहिए. सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि केंद्र सरकार इस बात पर अभी तक चुप बैठी हुई है. केंद्र में 2014 के अंदर राष्ट्र की जनता ने नरेंद्र मोदी की सरकार को प्रचंड बहुमत दिया था. यदि शक्तिशाली अपनी शक्ति का प्रयोग ही नहीं करेगा तो उसकी शक्ति का कोई औचित्य नहीं बनता है. भारतीय जनता पार्टी का यह सन्नाटा लोकतंत्र के लिए भी सही नहीं है.
बंगाल में ऐसी स्थिति एक तानाशाही वाले रवैय्ये की याद दिलाती है जहां राजा को अपने से आगे किसी की सुनने की आदत नहीं है. बंगाल को खुद की जागीर समझ चुकी ममता बनर्जी इस समय हर प्रकार से बंगाल के आम जनमानस की सोच को भी कंट्रोल करना चाहती हैं. भला हो हमारे संविधान का जो उनको ऐसा करने से रोकता है. लेकिन संविधान की भी सीमाये हैं और उन्हीं सीमाओं को इम्युनिटी की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.
इन चुनावों मे बंगलादेशी कलाकारों को बुलाया जा रहा है. उनसे चुनाव प्रचार करवाया जा रहा है. स्थितिया बहुत ज़्यादा विकट है. यह आने वाले समय मे बंगाल में कश्मीर जैसी स्थितिया बना देगा. यह एक सच्चाई है. इससे अगर आप मुंह मोड़ेंगे तो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे. चुनावी हिंसा के दम पर लोगों की आवाज़ दबाई जा रही है जो दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.
रायगंज के माधव फूलपुरी इलाके के लोगों का यह कहना है कि वोट डालने से पहले उनको कुछ गुंडों द्वारा डराया और धमकाया जाता था क्योंकि वह हिंदू सम्प्रदाय से आते थे. इसलिए उनके साथ मार पिटाई भी करने के प्रयास होते थे. लोकतंत्र की एक ऐसी भी तस्वीर है जो बंगाल से निकल कर कर आ रही है.
सच कहें तो बंगाल के अंदर लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा है और वह खतरा खुद ममता बनर्जी हैं. कुर्सी का लालच हर नेता को होता है होता है लेकिन उस लालच में हर राजनैतिक और लोकतांत्रिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर सिर्फ अपनी कुर्सी के बारे में सोचने वाले नेता राष्ट्र के लिए सबसे खतरनाक होते हैं, ममता बनर्जी उन्ही नेताओं में से आती हैं.
भाजपा को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ेगी क्योंकि यदि अभी उसने नहीं तोड़ी तो शायद भविष्य में उसको कभी मौका ना मिले. अन्याय को सहना भी एक पाप के समान ही होता है.
दावा त्याग – लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. आप उनको फेसबुक अथवा ट्विटर पर सम्पर्क कर सकते हैं.