महाज्ञानी चाणक्य जी अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में एक विचार लिखना भूल गए थे. कल हमारे सपने में आकर हमसे कहे; “बेटा हम चाहते हैं कि यह बात तुम मोह बंधन से बंधे इस संसार को बताओ.” अब चाणक्य जी जो इतने बड़े ज्ञानी थे, उनको हम मना कैसे करते?
तो भाइयों एवं भाइयों, चाणक्य जी कल रात हमसे कह रहे थे कि इस बार वोट कांग्रेस को ही देना है. चाणक्य जी की यह बात सुनकर हम लगभग चौंक ही गए थे, पर उन्होंने हमें सम्भाला और कहा; “अरे, हाँ भैया वोट कांग्रेस को ही देना है.” चाणक्य जी जैसे ज्ञानी महापुरुष से हमारी प्रश्न करने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी. लेकिन हमने बड़ी कोशिश करके पूछ ही लिया कि आख़िर हम कांग्रेस को वोट दें तो दें क्यों?
इस पर चाणक्य जी जोर से हंसे और बोले; “अरे बुड़बक, तुमको ये नहीं पता कि कांग्रेस में प्रियंका गांधी आ गईं हैं, जिनकी नाक दादी से मिलती है.” चाणक्य जी का इतना कहना था कि हम बोल पड़े; “नाक से दादी का क्या संबंध?” इस पर चाणक्य जी ने बताया कि नाक ‘नाक’ होती है और ये अगर कट जाए तो कोई मुह दिखाने लायक नहीं बचता. सुना तो है न इंदिरा के बारे में. बस फिर क्या था हम सब समझ गए, अगर गलती से जीतते-जीतते चुनाव जीत गए तो नाक ऊंची होगी पोती की और अगर हार गए तो जाने दादी.
हालांकि हम परम ज्ञानी चाणक्य जी की बात तो समझ रहे थे लेकिन थोड़ी दुविधा में भी थे, तो हमने पूछ बैठे; “बस नाक..?”चाणक्य ने कहा; “अरे उजबुक ‘आलू…’” यह सुनते ही मैं उछल पड़ा. मेरे दिमाग का सारा गोबर बाहर और हज़ारों फैक्ट्रियां उसके अंदर घूमने लगीं. हर घर में आलू से सोना बनाने वाली मशीन लगी हुई है. एक गरीब महिला जो कि बिल्कुल कमज़ोर दिख रही है, वो मशीन में एक तरफ़ से आलू डाल रही है, दूसरी तरफ़ से सोना निकल रहा है. देखते ही देखते मेरा भारत फिर से सोने की चिड़िया बन गया.
“सोने की चिड़िया” से तो दिल एक दम खुश हो गया था, पर जवाब के सवाल से नहीं. तो हमने फिर कहा; “बस?” चाणक्य ने फिर समझाया; “’कर्ज़’ तुम्हें पता है, कांग्रेस की सरकार थी तो सबको कर्ज़ मिल जाता था. जिसको जितना चाहिए, उससे कहीं ज्यादा भी ही मिल जाता था, और हमारे देश की तो परंपरा रही है हाँथ फैलाओ, मुट्ठी बांधो और अंगूठा दिखाओ. तो इन लोगों ने सबको दिया पैसा और परंपरा अनुसार सब मुट्ठी बांध विदेश यात्रा में निकल लिए.”
अब हम थोड़ा-बहुत मान चुके थे कि हमें कांग्रेस को वोट दे देना चाहिए, पर हमें चिंता थी अपने पड़ोसी की, मतलब पाकिस्तान की. अगर कांग्रेस आयी तो हमारे पड़ोसी की तो ऐश ही हो जाएगी, और कौन भारतीय चाहता है कि उसका पड़ोसी खुश रहे?
तो हम बोले चाणक्य जी; “पाकिस्तान…? बेटा पाकिस्तान की चिंता छोड़ो उसको तो अपने राहुल जी ही देख लेंगें. राहुल गांधी पाकिस्तान जाएंगे, वहाँ भाषण देंगें तो भूकंप आएगा, भूकंप से पाकिस्तान तबाह…” मैं एक दम खुश हो गया था कि इस देश की सब समस्याओं का हल सबसे बड़ी समस्या अर्थात कांग्रेस के पास ही है. बस चुनाव का दिन आए और बटन दबेगी हाथ में..
लेकिन मैं ठहरा गांव के व्हाट्सएप ग्रुप का बेरोजगार एडमिन. आखिर मुझे नौकरी भी तो चाहिए. मैं नौकरी का सोच ही रहा था.चाणक्य जी बोले कि क्या सोच रहे हो. नौकरी की चिंता तो नहीं है. हमने कहा; “हां महाप्रभु बस वही तो चाहिए”. इस पर उन्होंने कहा; “अरे पगलू मोबाइल की फैक्ट्री लगेगी न, उससे ही सबको रोजगार मिलेगा.”चाणक्य जी से हम और कुछ पूछते, उनका मोबाइल नंबर, विजटिंग कार्ड वगैरह मांगते, इससे पहले ही वो राफेल में बैठकर अंतर्ध्यान हो गए थे.
सुबह जब हमारी नींद टूटी तो हम चाणक्य जी की बात को सोच तो रहे थे, पर गुरुजी की बात याद आ गई. हमारे गुरुजी ने कहा था कि कोई भी कितना भी समझाए, बहलाए, फुसलाए वोट तो अपनी मर्ज़ी से ही देना है. हम चाणक्य जी की बात को ध्यान तो रखेंगें पर वोट अपनी मर्ज़ी से ही देंगें. वोट अपनी मर्ज़ी से देने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हमको चाहिए विकास, रोजगार और साथ मे इस देश की सुरक्षा. ये सब हमको कौन दे पाएगा, ये हम सोचेंगें और फिर वोट देंगे.