राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने एलान किया है कि वह नई पार्टी बनाएंगे. तेजप्रताप की नई पार्टी का नाम लालू-राबड़ी मोर्चा होगा. तेजप्रताप यादव पार्टी और अपने परिवार से नाराज चल रहे हैं. इस कारण उन्होंने बागी तेवर अपना लिया है.
तेजप्रताप चाहते थे कि उनकी पसंद के दो प्रत्याशियों के लिए शिवहर और जहानाबाद का टिकट दिया जाए. साथ ही उन्हे सारण से चन्द्रिका राय को पार्टी को उम्मीदवार बनाए जाने से भी नाराजगी है. चन्द्रिका राय तेजप्रताप के ससुर हैं, हालांकि तेजप्रताप ने अपनी पत्नी से तलाक के लिए अदालत में अर्जी दे रखी है.
ऐसा समझा जा रहा है कि सारण से वह अपने ससुर को चुनौती दे सकते हैं. एक दो दिन पहले उन्होने छात्र राजद इकाई के संरक्षक पद से इस्तीफा दे दिया था.
तेजप्रताप की यह शिकायत पुरानी है कि उनकी बात पार्टी में नहीं सुनी जाती. गत दिनों राजद नेता शिवानंद तिवारी ने भी इसी संबंध में कहा था कि तेजप्रताप की जिद के कारण जगहंसाई हो रही है जिसका असर आनेवाले चुनाव पर पड़ सकता है.
शिवानंद तिवारी ने राबड़ी देवी से आग्रह भी किया था कि वह तेजप्रताप को शांत कराएं. ऐसा भी समझा जाता है कि रांची जेल में बंद लालू प्रसाद भी तेजप्रताप के गुस्से को साधने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अब तक तेजप्रताप अपनी बात को लेकर अड़े हुए हैं.
दरअसल तेज प्रताप लोकसभा चुनाव में जहानाबाद व शिवहर सीटों पर अपनी पसंद के प्रत्याशी चाहते हैं. लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में राजद का नेतृत्व कर रहे उनके भाई तेजस्वी यादव ने जहानाबाद से ऐसे प्रत्याशी को टिकट दे दिया है, जिसे तेज प्रताप पसंद नहीं करते.
तेजप्रताप ने इसके बाद एलान भी किया था कि अगर राजद की ओर से उनकी पसंद के प्रत्याशियों को टिकट नहीं मिलता तो उनके प्रत्याशी उसी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे और जल्द ही वह अपना नामांकन दाखिल करेंगे. तेजप्रताप ने यहां तक कह दिया कि प्रत्याशियों की जीत के लिए वह हरसंभव प्रयास करेंगे.
किसी भी सूरत में नई पार्टी बनने से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) टूट सकता है, जैसा उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ हुआ है. वैसे राजद के टूटने की बात नयी नहीं है. लालू परिवार से भी राजद की टूट इससे पहले एक बार हो चुकी है जब 2014 चुनावों के पहले लालू प्रसाद के साले साधु यादव ने राजद से अलग होकर गरीब जनता दल नामक दल बनाया था.
भारत के क्षेत्रीय दल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह पहले ही हो गए थे. अब जब उन दलों के नेतृत्व की दूसरी पीढ़ी आयी है तो उत्तराधिकार का बवाल उत्तर से दक्षिण तक मचा हुआ है. उदाहरण के तौर पर सदूर दक्षिण के द्रमुक को लिया जा सकता है.
एनटीआर के तेलगु देशम में भी ऐसा ही हुआ. समाजवादी पार्टी का पारिवारिक कलह सतह पर है और अब राजद का उदाहरण भी सामने है. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी वंशवाद में जकड़ी है. हमारे लोकतंत्र में दलीय व्यवस्था ये लक्षण शुभ प्रतीत नहीं होते.