सरकारी नौकरी vs प्राइवेट नौकरी

तो भाइयों और बहनो आज का शीर्षक बड़ा ही दिलचस्प है. एक दो दिन पुरानी याद साझा करना चाहती हूँ आपसे. बात यूँ थी कि हमारी प्रिय कज़िन बहन माताजी से फोन पर बतिया रही थी और हम भी टंगे थे बीच में. समझे नहीं का? अरे भई, कांफ्रेंस काल तो सुने ही होंगे.

हमारी माता जी ने एक बात कही; “बेटा सरकारी नौकरी तो सरकारी ही होती है”. मतलब तो समझ ही गए होंगे आप लेकिन उनकी बात ने हमें दिमाग़ घुमाने पर मजबूर कर दिया. अब तो समझ आ ही गया होगा आपको किस बारे में बात की जा रही है. चलिए, बता ही देते है. आज का शीर्षक है सरकारी नौकरी vs प्राइवेट नौकरी या अपना बिजनेस.

अपनी माता जी की बात से हम शत प्रतिशत सहमत है कि सरकारी नौकरी तो सरकारी ही होती है, प्राईवेट थोड़ी ना होती है लेकिन अगर प्रश्न आये कि दोनों में कौन सी ज़्यादा अच्छी है तो भैया अपने यूपी-बिहार में गलतीं से भी मत पूछ लेना किसी से. भाषण के साथ बेज्जती फ़्री में मिलेगी.

हमारे यहाँ एक सरकारी टीचर के सामने स्टीफ़न हांकिंग की क्या औक़ात, नहीं पहचाने तो भैया गुगलिया लो हॉकिंग को. अब सब कुछ नहीं बता पाएँगे हम. एक प्राइवेट कम्पनी में काम करने वाला इंजीनियर और दूसरी तरफ़ सरकारी चपरासी में कोई मुक़ाबला नहीं हमारे यहाँ. और तो और रेलवे मे काम करने वाले लाइनमैन का भी अपना अलग ही टशन है. गूगल, माइक्रोसॉफ्ट,अमेजन और भी बहुत बड़ी कंपनिया हैं लेकिन इनके सीईओ को घंटा कोई नहीं पूछता हमारे यहाँ, काहे कि सरकारी नौकरी नहीं है ना इनकी. अब कौन समझाए इन्हें कि कितना आराम है हमारी सरकारी नौकरी में.

चलिए बहुत हो गयी तफ़री, अब आते है मेन बात पर. भैया, हमारी तो यही राय है कि जो आपको अच्छा लगे, वो करो. हम कौन होते है बताने वाले. मैटर तो यह है कि आप क्या चाहते है आराम या नाम. आराम चाहिए तो आज ही upsc और ssc की कोचिंग पकड़ लो और साल भर मे जीवन भर का काम कर डालो, फिर तो आराम ही आराम है. और अगर नाम चाहिए तो भैया पहले तो बेरोज़गार हो जाओ, थोड़ा दिमाग़ दौड़ाओ और कुछ कर दिखाओ. नाम पसंद लोग किताब तो पढ़ें ही होंगे -Think and Grow Rich . अरे नहीं पढ़े का ? तो पढ़ लो भैया, अभी भी समय है. एक बार हम भी पढ़ लिए थे ग़लती से, क़सम से गाना याद आ गया; “हमारा हाल ना पुछो के दुनिया भूल बैठे है”. लेकिन आराम पसंद लोग तो क़तई ना पढ़ें, काहे कि यह किताब बेरोज़गार कर सकती है. कहीं जोश जोश मे आप अपनी नौकरी न छोड़ दो. फिर गरियाओगे हमें दिन रात, तो भैया आप लोगन का तो दूर ही रहना सही है.

बाक़ी का करना है ऊपर बता ही दिए है. कृपया करके किसी की बातों में ना आएं. जीवन आपका है और आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आप क्या चाहते है. अगर ज़रा सा भी कनफ़्यूज है तो जाइए देसी ठेके से एक अंग्रेज़ी बोतल लेकर आइए, चढ़ाइए, फिर सबको गरियाइए जो आपको सलाह दे रहे है कि ये कर लो वो कर लो. फिर सोचिए आपको क्या करना है.

यहाँ जितने भी सरकारी आदमी हैं, प्लीज़ बुरा ना मानियेगा. हमें पता है कि कितनी चप्पलें घिसनी पड़तीं है सरकारी ठप्पा पाने के लिये. हमारा मतलब यह बिलकुल नहीं कि सरकारी आदमी को काम नहीं करना पड़ता. तनख्वाह लेने का काम करने से कौन मना करता है भला. वैसे आज के ज़माने मे मोदी जी भी इतने दयालु नहीं कि फ़्री की तनख़्वाह दे दें. कुल मिलाकर यह पोस्ट बस आपके मनोरंजन के लिये है, आपकी जलाने के लिए नहीं.



दावा त्याग – लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. आप उनको फेसबुक अथवा ट्विटर पर सम्पर्क कर सकते हैं.

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